इस बार मैंने जो एक कहानी सुन रखी है, उसे आप भी सुने-
एक सेठ जी के दुकान पर रामू नाम का नौकर काम करता था ।
अक्सर वह सेठ को यह कहते हुवे सुनता था कि “पैसा पैसे को खींचता है” लेकिन भोले नौकर रामू को, लाख कोशिश के बाद भी इस कथन का भावार्थ समझ में नहीं आया ।
पारम्परिक साज सज्जावाली दुकानों में रोकड़िये के पास एक लकड़ी/लोहे से बनी छोटी सन्दूक रखा होता है।
गल्ले के ढ़क्कन पर सिक्कें डालने के लिए एक छोटा सा लम्बा सा छेद बना होता है ताकि केवल सिक्कों में लेनदने होने पर गल्ले का ढक्कन न उठाना पड़े और उस पतले-लम्बे सुराख से सिक्कें गल्ले में डाले जा सके ।
एक बार सेठ जी जब खाना खाने घर गया तो नौकर रामु, दुकान में अकेला था । वह गल्ले के पास आया और अंटी से अपनी बचत का एक सिक्का निकाल कर उसको, सिक्के डालने वाले सुराख के सामने आगे-पीछे व सुराख के अन्दर-बाहर करने लगा ।
अपनी पहेली सुलझाने के लिए वह दत्तचित्त होकर अपने प्रयास में लगा था ऐसे में समय का ध्यान ही नहीं रहा । सेठ जी आ धमके और जोर से बोले, “क्या कर रहा है रामू” ।
अचानक सेठ जी की तेज आवाज को सुन रामू सकपका सा गया और हड़बड़ाहट में उसका सिक्का गल्ले में चला गया ।
रामू ने अपनी उधेड़बुन को साफ साफ बयां किया तो सेठ जी बोले- “अब तो पता चल गया ना कि पैसा पैसे को कैसे खींचता है, मेरे सिक्कों ने तेरे सिक्के को खींच ही लिया .